अमर चित्र कथा हिन्दी >> जातक कथाएँ सियार की कथाएँ जातक कथाएँ सियार की कथाएँअनन्त पई
|
2 पाठकों को प्रिय 398 पाठक हैं |
पेश है सियार की कथाएँ....
Jatak Kathyein Siyar Ki Kathayein -A Hindi Book by Anant Pai- जातक कथाएँ सियार की कथाएँ - अनन्त पई
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जीव जन्मता है, मरता है। फिर जन्मता है, फिर मरता है। हिन्दुओं की मान्यता है कि आवागमन का यह चक्र निरन्तर चलता रहता है। भगवान बुद्ध भी इस चक्र से बचे नहीं। अनेक बार बोधिसत्व के रूप में जन्म लेने के बाद ही उन्हें वह जीवन मिला जिसमें ज्ञान प्राप्त कर वे बुद्ध कहलाये।
बोधिसत्व के मानव, वानर, मृग, हाथी, तथा सिंह और अनेक योनियों में जन्म लिया था। हर रूप और जन्म में संसार को न्याय और दया का उपदेश दिया। सम्यक विचार और सम्यक जीवन के उनके ये उपदेश जातक कथाओं में संग्रहीत हैं।
बोधिसत्व के मानव, वानर, मृग, हाथी, तथा सिंह और अनेक योनियों में जन्म लिया था। हर रूप और जन्म में संसार को न्याय और दया का उपदेश दिया। सम्यक विचार और सम्यक जीवन के उनके ये उपदेश जातक कथाओं में संग्रहीत हैं।
सियार और चूहे
एक दिन, खाने की तलाश में सारा जंगल छानते हुए एक सियार की नजर चूहों के एक दल पर पड़ी। दल का मुखिया एक लम्बा-चौड़ा मूषकराज था।
मैं इन पर झपट सकता हूँ पर इस तरह मुश्किल से एक ही चूहा हाथ आयेगा, बाकी चंपत हो जायेंगे।
हाँ, अगर सूझ-बूझ से काम लूँ तो कई दिनों के खाने का इन्तजाम हो जायेगा।
उसने उनका पीछा उनके बिल तक किया।
जब वे सब बिल में घुस गये तो वह बिल के बाहर एक पैर पर खड़ा हो गया। उसका मुँह खुला था और चेहरा सूरज की ओर था।
कुछ देर के बाद, जब चूहे बाहर निकले-
आप एक पैर पर क्यों खड़े हैं ?
यदि मैं चारों पैर धरती पर टिका दूँगा तो यह धरती मेरा बोझ न सम्हाल पायेगी।
आप अपना मुँह क्यों बाये हैं ?
हवा खाने को । सिर्फ यही मेरा आहार है।
और आपने मुख ऊपर क्यों उठा रखा है ?
सूरज की पूजा के लिए।
मैं इन पर झपट सकता हूँ पर इस तरह मुश्किल से एक ही चूहा हाथ आयेगा, बाकी चंपत हो जायेंगे।
हाँ, अगर सूझ-बूझ से काम लूँ तो कई दिनों के खाने का इन्तजाम हो जायेगा।
उसने उनका पीछा उनके बिल तक किया।
जब वे सब बिल में घुस गये तो वह बिल के बाहर एक पैर पर खड़ा हो गया। उसका मुँह खुला था और चेहरा सूरज की ओर था।
कुछ देर के बाद, जब चूहे बाहर निकले-
आप एक पैर पर क्यों खड़े हैं ?
यदि मैं चारों पैर धरती पर टिका दूँगा तो यह धरती मेरा बोझ न सम्हाल पायेगी।
आप अपना मुँह क्यों बाये हैं ?
हवा खाने को । सिर्फ यही मेरा आहार है।
और आपने मुख ऊपर क्यों उठा रखा है ?
सूरज की पूजा के लिए।
|
विनामूल्य पूर्वावलोकन
Prev
Next
Prev
Next
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book